क्या आज की युवा पीढ़ी धर्म और धार्मिक कृत्यों को नकार रही है ! उने प्रश्न उनुत्तरीत है तो उनमें कुंठा

क्या हमारी युवा पीढ़ी, धार्मिक मान्यताओं को नकार रही है ?

अगर आप ध्यान दें लगभग 30-40 वर्ष पहले, दूरदराज के मंदिरों में, अथवा चारधाम यात्राओं में इतने अधिक लोग नहीं जाते थे । यह भी सत्य है आने जाने की सुविधाएं नहीं थी, रास्ते दुर्गम थे । यातायात के उतने साधन उपलब्ध नहीं थे । अब रास्ते बेहतर हो गए हैं, यातायात के साधन सुलभ हो गए हैं । और इसके साथ ही, उत्तर भारत में वैष्णो देवी की यात्रा में जाने वाले लोगों में बहुत बढ़ोतरी हुई है । इसी प्रकार दक्षिण में तिरुपति बालाजी के मंदिर में जाने वाले श्रद्धालुओं की भीड़ बढ़ गई है । यदि पश्चिम में देखे तो सिद्धिविनायक मंदिर में बहुत लोग जाते हैं । और इसी प्रकार लोग विभिन्न मंदिरों में, दरगाह पर, अथवा दूरदराज के गुरुद्वारों पर लोग बहुत अधिक संख्या में जा रहे हैं । क्या ऐसे लोगों का धर्म के रास्ते पर चलना माना जाए ? क्योंकि कुछ घटनाएं ऐसी होती हैं, जो  आज का तर्क के साथ बुद्धि का प्रयोग करने वाला युवा समझ नहीं पा रहा है, या उसे हम समझा नहीं पा रहे हैं । मैं अपनी बातों को कुछ घटनाओं से बताना चाहता हूं ।

सुरेश नाम का एक युवा, उसके दादाजी की मृत्यु हो गई । मृत्यु से कुछ समय पहले ही, एक चिकित्सक को बुलाया गया और उस चिकित्सक ने रोगी को देखने के बाद ही कहा कि  मृत्यु हो चुकी है । परिवार वालों ने जब उस चिकित्सक को फीस अथवा शुल्क देना चाहिए तो चिकित्सक ने नम्रता से कहा क्योंकि मैंने कोई इलाज नहीं किया है और मेरे आने से पहले इनकी मृत्यु हो गई थी मैं आपसे किसी भी प्रकार का धन नहीं ले सकता । जब मृत्यु हो गई, तो उनके अंतिम संस्कार के अगले दिन परिवार ने घर में हवन रखा । उस हवन को करवाने के लिए एक पंडित जी आए । जब उनसे दक्षिणा के लिए पूछा गया, तो उन्होंने उत्तर दिया कि मृत्यु से संबंधित किसी भी हवन की दक्षिणा मैं नहीं लेता ।

अब सुरेश को लगा, कि लोगों के मृत्यु के बाद शायद पंडित जी चिकित्सक का कर्म एक दूसरे प्रकार अलग सा हो गया और उन्होंने कोई भी धन नहीं लिया । यह इसके लिए अपेक्षित नहीं था । क्यूंकि जो वह आसपास मित्रों से सुनता था कि आज धर्म और चिकित्सा मात्र धन का खेल हो गया है ।  वही कुछ दिनों के बाद, परिवार वालों के कहने पर, कुछ ब्राह्मणों को बुलाकर भोजन करवाया गया । उसके बाद उन्हें कुछ दान दक्षिणा और धन दिया गया । जब उन व्यक्तियों को धन दिया गया, तो उन्होंने पैसे गिन   कर बोला क्या हमें आपने कम पैसा दिया है । उन्होंने परिवार वालों के साथ धन के लिए बहस की । अंत में सुरेश के पिता ने, जितना धन उन्होंने मांगा था वह दे दिया । परंतु सुरेश के पिता उनको कह रहे थे, कि जिन्होंने आपको बुलाया था, उस महानुभाव ने मुझे आपको इतना ही धन देने के लिए कहा था, तो आप अधिक की मांग क्यों कर रहे हैं । सुरेश को इस बात पर झटका लगा, घर पर आने वाले ब्राह्मणों को, पहले से तय किया हुआ पैसा मृत्यु भोज पर दिया जा रहा है । उसे कुछ अटपटा सा लगा, क्योंकि वह पिछले पंडित जी जिन्होंने हवन कराया था, और वह चिकित्सक जो घर पर आया था उससे इन आने वाले ब्राह्मणों की तुलना कर रहा था । इसलिए वह भ्रमित हो रहा था कि सच क्या है ?

कुछ दिनों बाद सुरेश के परिवार वाले, अस्थियां विसर्जन के लिए हरिद्वार गए । वहां पर उन्हें पंडित जी मिले, जिन्होंने यह पूछा कि मृत्यु कितने दिन पहले हुई थी, परिवार वालों ने बता दिया कि मृत्यु को आज 7 दिन हो चुके हैं । पंडित जी ने कहा, सर्वप्रथम तो आप मुझे 7 दिन का भोजन दीजिए जिससे कि मैं आपके पिताजी तक भोजन पहुंचा सकूं । सुरेश के पिताजी ने उनको 7 दिन का भोजन दिया । और बाकी क्रिया कर्म करके घर वापस आ गए । रास्ते में सुरेश ने अपने पिता से पूछा, कि पंडित जी ने किस आधार पर हमसे 7 दिन का भोजन लिया है ? सुरेश के पिता के पास इसका कोई उत्तर नहीं था । उन्होंने सिर्फ इतना कहा, हम पंडित जी को नाराज तो नहीं कर सकते थे, चलो जो उन्होंने मांगा हमने उन्हें दे दिया । पर सुरेश इस उत्तर से संतुष्ट नहीं था । वह धर्म और धार्मिक कृतियों के लिए भ्रमित हो गया ?

आइए अब दीपक की बात करते हैं । इन श्राद्ध के दिनों में, परिवार वालों ने पंडित जी को बुलाकर उनकी भोजन व्यवस्था और दक्षिणा की । दीपक ने अपने परिवार से पूछा, इसका क्या औचित्य है ? उसके परिवार वालों ने बताया, मृत्यु के उपरांत तुम्हारे दादा जी की आत्मा भटकती ना रहे, इसके लिए उसकी शांति के लिए हमने पंडित जी को भोजन और दक्षिणा दी है । दीपक ने पूछा, जब दादाजी की मृत्यु हो चुकी है, वह इस पृथ्वीलोक से किसी दूसरे लोक में जा चुके हैं, तो इन पंडितों को दिया गया भोजन और सामग्री उन तक कैसे पहुंचेगी ? दीपक आधुनिक शिक्षा से पढ़कर आईआईटी में इंजीनियर बना था । उसने यह प्रश्न पूछा, कि आप तो कहते हैं हिंदू मान्यता में पुनर्जन्म की व्यवस्था है । और मेरे दादाजी अब तक किसी ना किसी नए शरीर में जा चुके हैं, तो पंडित जी उन तक भोजन कैसे पहुंचा देंगे ? और क्या उनको जहां पर भी उनका जन्म हुआ है, यह पंडित जी बता सकते हैं ? किसी तरह परिवार वालों ने, उस दीपक की वार्तालाप को विराम दिलवाया । और उसे पंडित जी के सामने कुछ पूछे जाने से मना किया । दीपक अपने पिता के सामने चुप तो गया, परंतु उसकी शंका का समाधान नहीं हुआ ।

राहुल के विवाह के लिए उसके परिवार वालों ने 2 लड़कियां देखी, दोनों लड़कियों की कुंडलियां पंडित जी ने राहुल की कुंडली से मिलाई । एक लड़की को पंडित जी ने मना कर दिया, और दूसरी लड़की को राहुल के लिए उपयुक्त बताया । परिवार वाले और राहुल बहुत खुश हुए, विवाह के लिए एक लड़की का अंतिम निर्णय ले लिया गया । राहुल और आशिमा आपस में घूमने फिरने लगे, अपने विवाह के बाद की तैयारी करने लगे । विवाह के बाद जीवन कैसे चल रहा है इस पर कुछ चर्चाएं भी आपस में करते थे । परिवार वाले भी खुश थे, कि राहुल और आशिमा मैं प्रेम बढ़ता जा रहा है । राहुल हर दूसरे दिन आशिमा को घुमाने भी लेकर जाता था । विवाह से कुछ दिन पहले, राहुल और आशिमा कहीं घूमने गए । आशिमा ने उसको कहा कि तुम मिली यहां पर प्रतीक्षा करो, मैं अभी अपनी सहेली से मिलकर आधे घंटे तक आ जाऊंगी । राहुल ने सहमति दी और जाने के लिए कहा । और राहुल वहां पर 2 घंटे तक प्रतीक्षा करता रहा । जब 2 घंटे तक आशिमा नहीं आई, उसने उसको बार-बार फोन करने का प्रयास किया । आशिमा का फोन हर बार बंद आया । हताश होकर राहुल अपने घर वापस आ गया । और उसने आशिमा के माता-पिता को कॉल किया । तब पता लगा, की आशिमा अपने पुराने प्रेमी के साथ भाग गई है । अब राहुल ने अपने परिवार वालों से पूछा, क्या आपके पंडित जी ने कौन सी ऐसी कुंडली मिलाई थी, जिसके बाद आशिमा फिर अपने पूर्व प्रेमी के साथ चली गई, जिसके बारे में उसने मुझे कभी बताया तक नहीं । परिवार वालों के पास इस बात का कोई जवाब नहीं था । इस प्रकार से राहुल का कुंडली मिलाने और पंडित जी पर से विश्वास उठ गया । दूसरी बार फिर राहुल उसके माता-पिता ने, एक और जगह पर विवाह के लिए प्रेरित किया । अपने माता-पिता की इच्छा के लिए राहुल ने हामी भर दी । जब इस बार में उसी पंडित जी के पास दोबारा गए, राहुल इस पर आपत्ति जताई । परंतु माता-पिता को उस पंडित जी पर बहुत विश्वास था, अंततोगत्वा राहुल को एक बार फिर पंडित जी ने एक नई लड़की की कुंडली से मिलान करवा कर दे दिया । पंडित जी ने कहा, इस बार आपका भी बहुत बहुत धूमधाम से होगा । आप लोग पूरी तैयारी करके रहे । परिवार वाले खुशी-खुशी वापस आए वन विभाग की तैयारी में लग गए ।

समय पर इस विभाग की तारीख निश्चित की गई, जो कि पंडित जी ने बहुत शुभ मुहूर्त दे कर के बताई 21 नवंबर । परिवार वाले जोर शोर से इस शादी की तैयारी करने लगे । परंतु अचानक से 8 नवंबर को, इस देश में नोट बंदी लागू कर दी गई । जोर शोर से विवाह के लिए धन तो आपके पास था नहीं । सारे नकद लेनदेन पर लगभग रोक हो गई । बहुत सोच विचार करके, राहुल के परिवार में इस विवाह की तारीख आगे बढ़ा दी । राहुल को फिर से पंडित जी पर रोष था, उनको कैसे नहीं पता था कि नोटबंदी होने वाली । उसका अब कुंडली, ग्रह नक्षत्र ऊपर से विश्वास उठ गया ।

हमारे आसपास ऐसे कितने ही युवा हैं, जिनके पास ऐसी घटनाओं पर तर्क है, जो हम तथाकथित अध्यात्म बाद अथवा परंपरा से चलाते आ रहे हैं । आज का युवा तार्किक है, जब वह बड़ा हो रहा था तब हमने उससे कहा, बिना सोचे समझे कुछ मत करो जो भी काम करो बहुत सोच समझ कर करो । अब वह सोच समझकर के प्रश्न उठाते हैं, चाहे वह जातिवाद पर हो, एक प्रश्न यह भी उठता है, कितने लोग विभिन्न धार्मिक स्थलों पर जाते हैं । उसके बाद भी देश में भ्रष्टाचार और अन्याय क्यों बढ़ रहा ? इन सभी प्रश्नों का उत्तर, जो जो परिवार वाले अपने युवा पीढ़ी को दे पाएंगे । उस परिवार के युवा तो इस परंपरा को आगे बढ़ा देंगे । और जो नहीं बता पाएंगे, उनकी संतान धीरे-धीरे तथाकथित धार्मिक कृत्य से अलग होने लगेगी । मैंने यह बात ऐसे व्यक्तियों के बारे में बताएं, जो मेरे सामने थी और एक विशेष धर्म के अनुयाई थे । कमोबेश यही स्थिति हर धर्म के लिए हो रही है । मैं इसको, कुछ ठीक क्या कुछ गलत नहीं कह रहा हूं। किसी को आहत करने का मेरा उद्देश्य नहीं है । हां पर समाज में ऐसे प्रश्न उठ रहे हैं ।

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