कृष्ण जन्माष्टमी की बधाई के साथ आइए समझें कि विद्यार्थी के लिए कृष्ण के जन्म से क्या शिक्षा है जो कल भी महत्वपूर्ण थी और आज भी है । भविष्य में भी रहेगा

प्रिय विद्यार्थियों

आप सबको तो सबसे पहले इस कृष्ण जन्माष्टमी की बहुत-बहुत बधाई हो. इसके साथ हम यह समझने की कोशिश करें के कृष्ण जिसे हम अपने भारतीय परंपरा में भगवान के रूप में मानते, तो क्या उनकी कुछ ऐसी बातें भी आज उतनी ही सार्थक हैं जितनी 5 हजार वर्ष पहले थी। इस बात को समझने के लिए थोड़ा सा श्रीकृष्ण की उन बातों को समझें जो आज भी उतनी ही सार्थक हैं। और इसमें से भी मैं आपके लिए लेकर आया हूं एक विद्यार्थी के जीवन में आवश्यक है, कल की थी और भविष्य में भी रहेंगे।

आइए श्री कृष्ण के जीवन व्यवहारों से हम सबसे पहले एक जानकारी प्राप्त करें, जिसे हम कहते हैं कृष्ण सुदामा मैत्री। आपको पता है के कृष्ण और सुदामा दोनों ही गुरुवर संदीपनी के पास आश्रम में विद्या अर्जन करने के लिए गए थे । उस समय के परिवेश में आप समझिए राजा हो या रंक, अमीर हो गरीब,किसी भी जाति या समुदाय का हो, यदि शिक्षा लेनी है तो गुरु के आश्रम में ही जाना पड़ता था । उस समय में एक ही जो गुरु के नाम से प्रसिद्ध होता था उसमें सबको  जाना होता था वहीं पर रहकर आश्रम की, गुरु की सेवा करते हुए विद्या अर्जन करनी होती थी ।

आपको शायद यह भी याद होगा महाभारत के समय में कौरव और पांडव दोनों के एक ही गुरु थे,  द्रोणाचार्य के आश्रम में पढ़ने गए थे, अपने समय में श्रीराम भी आश्रम में पढ़ने गए थे. तब आजकल के जैसी व्यवस्था नहीं थी एक सरकारी विद्यालय है. कुछ निजी विद्यालय हैं जिनके आपसी स्तर में बहुत अधिक अंतर हैं। आज भी कुछ विद्यालय कह सकते हैं बहुत अमीरों के लिए बने हैं, कुछ मध्यम परिवारों के लिए और कुछ निम्न परिवारों की।

तो मैं  अपनी मूल बात पर आता हूं कि जब वर्षों बाद सुदामा कृष्ण को मिलने गए, तो सुदामा की पत्नी ने कुछ चावल दिए कि आप अपने मित्र के घर जा रहे हैं तो उसके लिए कुछ भेंट अवश्य ले जाएं। सुदामा ने जब कृष्ण का महल देखा तो वह अपने आप में बहुत से स कुचाय। उन्हें लगा मैं इस राजा को कैसे यह तुचह भेंट दूँ । लेकिन अंत में जैसे ही कृष्ण को पता लगता है के सुदामा झिझक रहे हैं उन्होंने बहुत चाव से चावलों को ग्रहण भी किया और सुदामा को अपने बराबर बिठा कर रखा उनका पूर्ण सत्कार किया। कृष्ण के मन में यह कभी नहीं आया के सुदामा दरिद्र हैं। घटना से हमें है सीख मिलती है कि आज के शिक्षण काल में आपकी जो भी मित्र बने भविष्य में वह तथाकथित रूप से बड़े हो सकते हैं , किसी रूप से छोटे भी सकते हैं। पर आपका प्रेम, स्नेह और  विश्वास उनके लिए कभी कम नहीं होना चाहिए।

दूसरी घटना जो कृष्ण के जीवन से आपको सीखनी चाहिए वह है कृष्ण द्वारा शिशुपाल का वध। शिशुपाल दूर के रिश्ते में कृष्ण के भाई थे. परंतु अत्याधिक चंचल और उनकी वृत्तीय थी क्यों लोगों को परेशान करके आनंदित होते थे। 1 तरीके से दूसरों को परेशान करने में उन्हें अनंत ही मिलता था, जब वह ऐसे ही श्रीकृष्ण के साथ भी करते थे तो श्रीकृष्ण उन्हें दंड नहीं देते थे, शिशुपाल की माता को यह पता था कि श्रीकृष्ण अधिक बलशाली है तो कहीं वह शिशुपाल को दंड ना दे दे. इसके लिए भोजन करते हुए किसी समय शिशुपाल की माता ने व्रत लिया कि वह कभी भी शिशुपाल को दंडित नहीं करेंगे। परंतु श्री कृष्ण यह कहा की बुआ मैं इसकी सौ गलतियाँ क्षमा कर दूंगा लेकिन जैसे ही 101 वीं गलती करेगा  करेगा तो मैं इसे अवश्य दंडित करूंगा। बुआ ने सोचा कि धीरे-धीरे मेरा बेटा बड़े होकर समझदार बन जाएगा त सौ गलती की माफी  ही बहुत है , लेकिन इतिहास गवाह है जब शिशुपाल ने 101वीं  बार गाली दी तो भरी सभा में उसको सुदर्शन चक्र से मृत्यु के घाट उतार दिया। इससे आपको यह शिक्षा लेनी चाहिए अपने मित्रों भाइयों में एक सीमा तक आपको संयम अवश्य करना चाहिए, छोटी-छोटी बात पर विरोध और मनमुटाव आपस में नहीं करना चाहिए। आप ध्यान करें बुद्धि मनुष्य को दी गई है, अपने मित्रों से आपका मतभेद तो हो सकता है परंतु मन भेद नहीं होना चाहिए ।

और आइए अब अंत में महाभारत  से जुड़े एक किस्से को समझें । जिस समय दुर्योधन अपने युवराज बनने के साथ साथ पांडवों को देश से निकालने को प्रतिबद्ध थे । ऐसे में यह लगभग निश्चित था कि युद्ध होना है । आप जानते है कि यह युद्ध जो मात्र 18 दिन तक चला महाभारत क्यों कहा जाता है ? उस समय के सभी राजाओं नें इस युद्ध में अपना अपना योगदान दिया । चाहे वह कौरवों के साथ थे या पांडवों के साथ । तो यह लगभग आप समझिए कि महायुद्ध ही था । युद्ध लगभग निश्चित होने के बाद भी श्रीकृष्ण ने प्रयास नहीं त्यागे और अंतिम समय यहाँ तक प्रस्ताव ले कर पहुंचे थे कि यदि दुर्योधन उन्हे मात्र 5 गाँव भी दे देगा तो पांडव उसे सहर्ष स्वीकार करके के इस महायुद्ध से पीछे हट जाएंगे ।

लय आप बता सकते हैं कि वह 5 गाँव कौन से हैं ? वह गाँव आज भी विद्यमान हैं । एक तो पानीपत दूसरा सोनीपत है । चलिए आप बाकी के पाँच और बताइए । इतना बता दूँ कि सभी दिल्ली के आसपास हैं और सबके नाम के आगे पत है

इस घटना से यह शिक्षा मिलती है कि युद्ध अंतिम विकल्प के रूप में ही लिया जाना चाहिए । अंत तक यही प्रयास रहे कि युद्ध न करना पड़े । विद्यार्थियों आप भविष्य के नागरिक हैं, आपको यह अवश्य समझना चाहिए कि युद्ध किसी भी समस्या का स्थायी निदान नहीं है । भारत पिछले 70 साल से कश्मीर का युद्ध झेल रहा है । अब नया अफगानिस्तान के सामने का दृश्य आपके सामने ही है .

 

 

 

 

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