करोना आर्थिक प्रभाव एक भारतीय परिवेश से जब तक करोना समझ आया, क्या देर हो चुकी है ?

जैसे ही यह समाचार आया, सभी देशों नें अपने व्यावसायिक कार्यव्यवहार को बंद करने का निर्णय लिया । अब इसके चलते सभी उद्दयोग बंद पड़ गए । देश की लगभग 43 करोड़ की जनसंख्या जो किसी न किसी प्रकार से कोई न कोई रोजगार करती थी, उनमे से लगभग 12 करोड़ प्रवासी कामगार थे । अब भारत देश के परिवेश में समझिए कि लगभग 40 से 60 दिनों तक रोजगार न होने के बाद सभी प्रवासी लोग अपने घरों को निकाल गए । आज 25 मई तक भी सब लोग अपने घरों को नहीं पहुँच सके । चलिये अब अगले शायद 40 दिनों मे सब अपने अपने गाँव में पहुँच जाएंगे । अब घर पहुँचने के बाद उनको 14 दिनों के लिए आपके क्वारन्टाइन कर दिया । सरकार पर उनको लाने और घर के पास क्वारन्टाइन सेन्टरों मे रखने और उनको राशन देने में करोड़ों रुपये लग गए । यह तो एक बात हुई, परंतु आज नहीं तो कल जब इनके कार्यक्षेत्रों में, घर से दूर,  इनके लिए रोजगार के अवसर दोबारा उत्पन्न होंगे तो क्या वह जाना चाहेंगे ?

इसके प्रभाव से आपको अब नयी और बढ़ी हुई कीमत पर कामगार उपलब्ध होंगे, भारत देश जो आजतक सस्ती मजदूरी के कारण ही अपने सामान का निर्यात कर सका, क्या वह अब अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में अपना सामान बेच पाएगा । यहाँ यह समझने की बात है आज भी चीन हमसे सस्ता बाज़ार भारत मे दे पता है ।  इसके अतिरिक्त घरेलू उद्दयोग में भी कामगार न मिलने से घरेलू समान की कीमतें भी बढ़ जाएंगी । क्या भारतीय उद्दयोग इसके साथ चल पाएंगे और अपना बाज़ार बना पाएंगे । आज प्रदेश सरकारें कह रही हा कि कामगारों को उनके शिल्प के अनुसार काम अपने ही प्रदेश में दे दिया जाएगा । श्रीमान, यदि यह इतना सरल होता तो आज तक आपके देश से प्रवासी मजदूर शब्द ही अपना औचित्य खो जाता । आज भी यदि किसी व्यक्ति को किसी शहर की अपेक्षा  अपने गाँव में 60% आम्दानी भी हो जाए तो वह आने परिवार को छोड़ कर नहीं जाएगा । क्यों आज भी प्रवासी मजदूर शब्द बिहार औरर उत्तर प्रदेश के कामगारों का पर्याय बन कर रह गया । आप याद करें जब महाराष्ट्र नव निर्माण सेना के बिहार और उत्तर प्रदेश के कामगारों को मुंबई से भगाने का काम शुरू किया तो स्वयं ही रुक गए । क्योंकि जितना योगदान  मुंबई की अर्थव्यवस्था में बिहार और उत्तर प्रदेश का व्यक्ति देता है , उतना स्वयं महराष्ट्रियन कामगार नहीं देता, क्योकि उसको अपने गाँव में काम मिल रहा है ।

अब आप इसका प्रभाव मात्र इससे समझ सकते हैं कि पर्यटन संबंधी व्यवसाय मे 4.2 करोड़ नौकरियाँ थी अर्थात इतने  लोग इसे अपनी आजीविका चलाते थे । 4.2 करोड़ का अर्थ समझीए  कि लगभग 18 करोड़ की जनसंख्या इससे अपना भरण पोषण करती है । (औसत एक परिवार में 4.5 सदस्य) । आने वाले समय में यह लगभग बंद की स्थिति मे रहेगा । इस व्यवसाय को वापिस उठने में बहुत समय लग जाएगा । इसी प्रकार  से देश का लघु  और मध्यम उद्दयोग जो देश की अर्थव्यवस्था में घरेलू उत्पाद और निर्यात के माध्यम से 60% से अधिक योगदान देता है और रोजगार मे जिसका योगदान 80% से अधिक है । सबसे बड़ी चुनौती इस समय इन लघु और मध्यम उद्दयोग को पटरी पर लाने का काम है ।

सबसे पहले तो कामगार चाहिए कि लघु और मध्यम उद्दयोग चले, फिर उन उद्दयोगों का सामान उसी गुणवत्ता मे बने और उसी कीमत में । उसके बाद भारत मे उस उत्पाद को क्रय करने की क्षमता खरीददारों में हो । तब जाकर हम उस उत्पाद को निर्यात करने का सपना देखेंगे ।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *