आप क्या समझते हैं कि विकास दुबे के साथ राजनीति में अपराधियों का अन्त हो गया !

बड़ा प्रश्न है कि क्या बाहुबली विकास दुबे वास्तव मारा गया है ? हो सकता है कि विकास दुबे नामक एक बाहुबली मारा गया परंतु यह विकास दुबे , देश की राजनीति को प्रभावित करने वाले असंख्य बहुबलियों मे से एक था ।

विकास दुबे जैसे बाहुबली व्यक्तियों को राजनीतिक संरक्षण क्यों प्राप्त होता है?  क्या आपको लगता है की विकास दुबे को यदि  राजनीतिक संरक्षण प्राप्त नहीं होता तो क्या उसका कद इतना बड़ा होता कि वह पुलिस के सिपाहियों  की हत्या की कोशिश भी करता ? आज की बात नहीं है आज से पहले भी 2001 विकास दुबे ने पुलिस थाने  में घुसकर सिपाहियों और एक मंत्री की हत्या की थी.  अब प्रश्न यह है कितने अपराधों के बाद भी यह लोग कानून की बेड़ियों से दूर कैसे रहे ? इसका कारण स्पष्ट है इन लोगों को राजनीतिक संरक्षण प्राप्त होता है। आप आज शायद किसी विशेष राजनैतिक दल को इसका जिम्मेदार बताएं ,  परंतु सत्य यह है हर राजनीतिक दल ने किसी न किसी समय, किसी न किसी प्रकार का संरक्षण किसी ना किसी बाहुबली को अवश्य दिया है । इस क्रिया से कोई भी दल अछूता नहीं है ।

आप यदि थोड़ा गहरा सोचे,  भारतीय राजनीति में जब चुनाव आते हैं,  सभी राजनीतिक दलों को अपने पक्ष में मतदान चाहिए होते हैं । अब यह मतदान साम दाम दंड भेद, जिस भी प्रकार से मिले उसे लिया जाता है।   कारण स्पष्ट है अंत में किसी नेता के लिए  बहुमत ही महत्वपूर्ण है,  बहुमत कहां से आया किस कीमत पर आया यह कभी भी महत्वपूर्ण नहीं रहता । गांव में व्यक्तियों का पक्ष, जाति और समाज में टूटा हुआ है, यदि भारत के ग्रामीण भूलना भी चाहें तो मतदान के निकट उन्हे फिर से याद करवाया जाता है । उनके लिए यदि गांव में कोई बाहुबली उनको कहे कि आप राजनीतिक दल के व्यक्ति को चुने, और बदले में आपको उनसे अपने गांव में सड़क बनवा दूंगा,  किसी को नौकरी लगवा दूंगा किसी को कुछ सरकार के ठेके दिलवा दूंगा। आम गांव वासी इतना परिपक्व नहीं है,  बहुत दूरदर्शी नहीं है ,  दूसरी बात समाज में आज की रोजी रोटी की चिंता हो, आने वाले कल के विषय में नहीं सोच सकता। इसलिए किसी बाहुबली के निर्देश पर मतदान हो जाता है ।

अब यह बाहुबली अपने कुछ व्यक्तियों को नौकरी ठीक है और अपने गांव के विकास के कुछ काम करवा देते हैं और बदले में राजनेता उस गांव के संपूर्ण मत उससे से अपनी तरफ करवा लेता है ।  होना तो यह चाहिए प्रत्येक नेता अपने कार्यों की जनता से समीक्षा करवाएं और फिर निष्पक्ष मतदान के बाद वह जीतकर आगे आए । जी वास्तव मे लोकतन्त्र की मांग है परंतु शायद हमारे देश मे छद्म लोकतन्त्र ही चल रहा है । कहने को हम सब विश्व के सबसे बड़े लोकतन्त्र का हिस्सा है, परंतु क्या यह सत्य है ।    आज के लोकतंत्र में किसी चुनाव को जीतने के लिए आपको धनबल और बाहुबल का प्रयोग करना पड़ता है और यही बहुत बड़ी सच्चाई है।

बाहुबलियों और जातिवादी नेताओं को अपनी उत्तरजीविता (survival) रखने के लिए यह आवश्यक है कि समाज किसी ना किसी रूप में वंचित रहे,  दरिद्र रहे और आपस मे बंटा रहे । अभी तो यह  बाहुबली किसी दल के राजनेताओं से मिलकर थोड़ी बहुत पक्षपात करवाकर अपने गांव वालों को प्रसन्ना रखते हैं।   यही सबसे बड़ा कारण है जिसके लिए आज तक किसी राजनीतिक दल ने वास्तविक शिक्षा और विकास को बढ़ावा नहीं दिया।   इस देश में पर्याप्त मात्रा में संसाधन है परंतु उन संसाधनों को केवल कुछ व्यक्तियों तक ही सीमित कर दिया गया है.   और इस कार्य में कोई भी राजनीतिक दल अछूता नहीं है.

कहीं ना कहीं आप समझिए यह राजनीतिक दलों की मजबूरी भी,  क्योंकि जनता से या तो आप विकासवाद की बात करें और मत ले,  या फिर लोगों को शिक्षा और जातिवाद में उलझा कर यहां से मत को अपने पक्ष में प्राप्त करें। दूसरा इस देश में कोई स्वच्छ व्यक्ति बहुत आसानी से किसी भी चुनाव में जीत नहीं सकता,  उसके पास चुनाव प्रचार के लिए पर्याप्त धन नहीं  है। यह पूरा चुनाव का खेल काले धन पर आधारित है जिसके पास काला धन है चुनाव जीता है और अगली चुनाव के लिए फिर से काला धन एकत्रित करता है,  अब यह काला धन आएगा कैसे, उसके लिए एक ही उपाय है,  सरकार के तथाकथित विकास का धन गांव के बाहुबली की इच्छा से व्यव किया जाये और बदले मे बाहुबली स्वयं और अपने विश्वास पात्रों से कुछ हिस्सा उस राजनीतिक दल को दे ।

एक अनुमान के अनुसार प्रतीक सांसद अपने चुनाव प्रचार में लगभग 10 करोड़ रुपये व्ययव करता है । अब जीतने के बाद उसको एक तो 10 करोड़ इकट्ठा करना है पिछले चुनाव मे व्यय किया और अगला 10 करोड़  अगामी चुनाव की लिए चाहिए । अर्थात 5 वर्षों में उसे कम से कम  20 करोड़ एकत्रित करना है । इस हिसाब से प्रतिवर्ष प्रति उसे 4 करोड़ रुपये एकत्रित करने हैं । यदि प्रतिदिन कहा जाए एक लाख रुपये चाहिए । आप कल्पना करें इतना धन कहां से आ सकता है ।  इसलिए अभी की व्यवस्था में बहुबलियों को सम्पूर्ण रूप से हटाना लगभग असंभव है ।

परंतु क्या हमें इसी व्यवस्था में जीना है ? इससे निकालने के लिए क्या कर सकते हैं ? आइये इस पर विचार करें अगले अंक मे …..

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *