आज यह शिक्षा क्या वह समाज को दे पा रही है जो इसे देना चाहिए ! क्या इसके कारण समाज में कुंठा बढ़ती नहीं जा रही है

प्रिय शिक्षकगण अभिभावक गण और  प्यारे विद्यार्थियों,

यह विचार विशेष रुप से शिक्षक दिवस के उपलक्ष्य मे मैं लिख रहा हूँ ।  मेरे पिछले 30 वर्षों के शिक्षण कार्य में और लगभग उतना ही समय विद्यालय, विश्वविद्यालय में अध्ययन के समय मैंने जो स्थितियां, अनुभव की है मैं उन अनुभवों को आपसे बांटना चाहता हूं ।  मैं शत प्रतिशत सही हूं यह मैं नहीं कह रहा हूं, फिर भी मुझे लगता है आप छोटे गांव,  कस्बों और  ग्रामीण अंचल अथवा छोटे शहरों में रहकर इस परिवेश को समझने का प्रयास करेंगे तो शायद आपको यही घटनाएं अपने आसपास दिखती नजर आएंगी ।  यह  मैं स्वयं कह रहा हूं के शायद बड़े शहरों में यह घटनाएं इस प्रकार दृष्टिगोचर न हों, लेकिन फिर भी अंतरंग रुप से बड़े शहरों में भी इसका प्रभाव देखा जा सकता है ।

 

मेरी इस विचार को पढ़ने से पहले, जानने से पहले, समझने से पहले ,सुनने से पहले, आप इस विचार को स्व केंद्रित कीजिए अर्थात यह देखिए कि क्या यह मेरे साथ घटित हुआ है उसके उपरांत क्या आपके परिवार में यह भी घटित हुआ है और यदि आपके स्वयं में और परिवार में घट रहा है तो पूरे समाज में यही हो रहा है। प्रश्न यह है यह कितना सही है, कितना गलत इसका कुछ हम विश्लेषण करें।

आप इस विश्लेषण को करें कि जब आज के अभिभावक गण पढ़ते थे और आज के विद्यार्थी जो पढ़ते हैं । समय  के साथ पुराना विद्यार्थी आज अभिभावक बन गया आज का विद्यार्थी भविष्य में अभिभावक बनेगा । उस समय के साथ हम यह जानने का प्रयास करें कि हमारा गुरुओं के प्रति आदर, माता पिता के प्रति आदर, सम्मान बढ़ा है या घटा? मुझे ऐसा लगता है कि आप ऐसा विचार करेंगे तो आपको यह प्रतीत होगा कि आने वाले समय के साथ-साथ यह गुरुओं,  शिक्षकों और घर के बुजुर्गों से सन्मान या उनको किए के सम्मान में कमी पाई गई है। मेरा यहां मतलब नमस्ते कहकर किए गए सन्मान या चरण छूकर किए गए सम्मान से नहीं है परंतु बच्चों के हृदय में, क्या आपका आपके माता पिता के प्रति, जो आपके हृदय में उससे समझने की जरूरत है।

 

इसके पश्चात यही बात यदि आप शिक्षक हैं आप स्वयं में महसूस कर आज के विद्यार्थी द्वारा दिया गया सम्मान और आप जो  अपने गुरुओं को सम्मान देते थे उसमें क्या समय के साथ कमी आई है या बढ़ावा हुआ है? मुझे ऐसा लगता है इसमें भी आप पाएंगे कि

समय के साथ यह सन्मान घाट ही है , मैं यहां पर यह सिर्फ सन्मान की बात नहीं कर रहा हूं परंतु माता-पिता, शिक्षकों के साथ जो संवाद होता था . आप जोड़ने यह एक तरह से संवाद बड़ा है या घटा है? अब यहां पर भी संवाद इसको मत लीजिएगा आप क्या कहते हैं बच्चे आपसे कितना सुनते हैं, मेरे कहने का अर्थ है कि विचारों की सहमति पहले से बड़ी है या घटी है।

 

मुझे व्यक्तिगत रूप से ऐसा लगता है सन्मान तो घटा ही है एक बात और है उसके लिए पूर्ण रूप से नई युवा पीढ़ी को दोष भी नहीं दे सकते। उसका कारण यह है आज की पीढ़ी पहले से अधिक विश्लेषणात्मक बुद्धि  रखती है,  तार्किक बुद्धि रखती है, कभी-कभी आप ऐसे पाएंगे युवा पीढ़ी द्वारा तर्क के आगे आप निरुत्तर हैं। और यदि आप पीछे जाकर देखना चाहे तो आपको लगेगा कि आपने अपने समय पर इस प्रकार के तर्कों को समझा ही नहीं था । एक और बात इतना सब दूरियाँ होने के बाद भी बच्चों और अभिभावकों के सुख में भी कमी आई । मतलब विद्यार्थी भी आज पहले से अधिक कुंठित हो रहा है । विद्यार्थियों की आत्महत्याएं इसका प्रमाण हैं ।

अब यहाँ पाठ्यक्रम इत्यादि की बात तो मैं नहीं करूंगा, उसका उससे विषय लंबा हो जाएगा इसलिए उसके विषय में चर्चा अगले लेख  मैं करूंगा परंतु अभी मैं यह बात करना चाहता हूं कि जो हम पढ़ा रहे हैं वह बच्चे पर वह विद्यार्थी पर अदृश्य रूप से क्या प्रभाव करता है ? हम जो पढ़ते थे हमसे मेरा मतलब आज से 25 वर्ष पहले जब हम पढ़ते तब बच्चे के पास सूचनाएं देने के लिए दो  ही साधन थे , इनमें से एक अभिभावक था और दूसरा विद्यालय का शिक्षक । बचपन से ही बच्चा ज्ञान के मामले में अपने शिक्षक को पिता से अधिक मानता है। इसके कारण वही बच्चा घर आकर ऐसा भी कहता है मुझे स्कूल में यह बताया गया और आप यह बता रहे हैं आप गलत हैं विद्यालय ठीक है। शायद इसका कभी आपने अनुभव भी किया हो

 

अगली बात शिक्षक भी इस बात को समझें के जैसे जैसे बच्चा छोटी कक्षा से बड़ी कक्षा में जाता है क्योंकि उसकी बुद्धि, तर्क करने की क्षमता और आपसे सामंजस्य होने की स्थिति हो रही है, आप आएंगे के तर्कशक्ति में वह आप से आगे निकल रहा है परंतु सामंजस्य, प्रेम भाव, आदर भाव, यह सब कम हो रहा है । यही नहीं तीसरी चौथी कक्षा का विद्यार्थी आपको देता है नौवीं दसवीं का विद्यार्थी  में भी आपको यह अन्तर मिलेगा । इसके साथ ही आप यह समझे कितने समय में क्या अंतर आया और क्यों अंतर आया?

 

मनोवैज्ञानिकों के अनुसार कोई भी बच्चा 4 वर्ष से लगभग 13 वर्ष की आयु तक बहुत प्रश्न पूछता है, बहुत जिज्ञासु होता है अब यह हमारे शिक्षा की व्यवस्था है, उसे जिज्ञासु अथवा उसकी जिज्ञासा को उत्पन्न होने को ही रोक देती है । लगता है हम उसकी जिज्ञासा को शांत करके उसकी जिज्ञासा को ही समाप्त कर देते हैं। कालांतर में वास्तविक जिज्ञासाओं को शांत रह करके बाहर के माध्यम से जानने की कोशिश करता है। कुछ सफल,  असफल भी होता है परंतु क्योंकि उसकी जिज्ञासा आएं बाहर से शांत होती हैं वह उन्हीं  स्त्रोतों को बेहतर मान लेता है।

कुछ घटनाओं का मैं आपके सामने समधन रखना चाहूंगा। कक्षा 3 की हिंदी की पुस्तक में मैंने देखा, यह लिखा है सरोजिनी नायडू बहुत बुद्धिमान थी क्योंकि वह 5 वर्ष की आयु में अंग्रेजी में कविताएं लिखती थी। हो सकता है आपको लगे यह भाषा हमने उसको सामान्य रूप से सरोजिनी नायडू के व्यक्तित्व को बताने के लिए कही है। परंतु वह बच्चा जो अभी तक हिंदी से जूझ रहा है और उसे आपने बुद्धिमत्ता की निशानी बता दी, अंग्रेजी में कविताएं करना । वह बच्चा अपनी भाषा को अब कुछ नहीं समझेगा। इसके साथ छोटे बच्चे को एक सिंड्रेला की कहानी बताई जाती है, जिसमें परी को एक राजकुमार मिलता है क्योंकि वह सुंदर है। कुछ समय बाद किसी कारण से इतनी सुंदर नहीं रहती उसका राजकुमार उसे नहीं मिलता पूर्ण विराम कालांतर सुंदर हो जाती है और उसे राजकुमार मिल जाता है। कल्पना करें एक छोटी बच्ची दिमाग में हमने यह डाल दिया कि सुंदरता का बहुत बड़ा महत्व है । यही बात हमारे समाज में नजर आता है । यदि आप देखें, आज जितने विज्ञापन आपको मिलते हैं आपको मिलते हैं, वह चेहरे की सुंदरता के लिए हैं, बालों की बेहतरी के लिए हैं, सांसों में खुशबू आने के लिए,  मर्दों को सुंदर बनाने के लिए है,  गोरे बनाने के लिए इत्यादि इत्यादि । आप समझिए क्या हमारे लिए यह आवश्यक है? परंतु बच्चे के मन में उसी शिक्षा के कारण बाहर से इस मीडिया के कारण इस दुष्प्रभाव होता जा रहा।

 

आप यह समझें कि आपके शिशु को बाहर से कितने प्रकार के आक्रमणों (मेडिया, समाचार इत्यादि ) से लड़ना है ।  हम घर में ही एक उदाहरण देखते हैं ।  छोटा सा बच्चा है वह कहीं गिरता है तो हम उसे समझाते हैं कि तुम इस स्थान पर लगकर गिरे,  इस को मारो क्योंकि इसने तुम्हें कष्ट दिया है। चाहे हम चाहे हम बच्चे के मन में हिना शिक्षक वृत्ति डाल रहे हैं कि जो तुम्हें कष्ट दे तुम उसे मारो। क्या ही अच्छा हो हम यह कहीं तुम इससे प्रेम करो कुछ कारू तो यह तुम्हें अगली बार नहीं मारेगा। जाने या अनजाने हम उस बच्चे के मन में यह डाल देंगे तुम्हें कोई कष्ट भी करता है तो प्रेम से उससे बात करें यदि आपको यह सारी बातें अपने आसपास होती प्रतीत हो तुम्हें कुछ विस्तार से अगले देखने बताऊंगा और मुझे अपनी समझ के साथ लगता है निवारण की बात भी करूंगा धन्यवाद

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