
रावण के दस सिरों का अर्थ : सिर से तात्पर्य बुद्दि है कहा जाता है कि रावण एक बहुत ही ज्ञानी व्यक्ति था । उसके पास चारों वेदों का ज्ञान था और 6 शास्त्रों का भी वह ज्ञाता था । इसी से उसके 10 सिर दिखा दिये जाते हैं । वह इतना ज्ञानी था कि जब उसकी मृत्यु लगभग निश्चित हो गयी तो श्री राम ने लक्ष्मण से कहा कि इस ज्ञानी से ज्ञान ले कर आओ । इसके जाते ही इसके साथ का ज्ञान लुप्त हो जाएगा ।
इसके बाद लक्ष्मण रावण के पास गए और उसके सिर के पास जा कर कहा “मुझे रामचन्द्र जी ने भेजा है मुझे कोई ज्ञान दीजिये ।“ रावण ने कहा “राम स्वयं इतने ज्ञानी हैं मेन क्या ज्ञान दूँ आपको” । लक्ष्मण वापिस आ गए और राम से कहा कि रावण ने मुझे कुछ ज्ञान नहीं दिया । राम ने पूछा कि तुमने कैसे प्रश्न किया । लक्ष्मण ने सारा वृतांत बता दिया । तब राम चन्द्र ने कहा कि तुम उनके चरणो मे बैठ कर पूछो । लक्ष्मण फिर गए और अब रावण के चरणों पर बैठ कर वही पूछा। तब रावण नें उन्हे तीन शिक्षाएं दीं ।
1- पहली बात जो रावण ने लक्ष्मण को बताई वह ये थी कि शुभ कार्य जितनी जल्दी हो कर डालना और अशुभ को जितना टाल सकते हो टाल देना चाहिए यानी शुभस्य शीघ्रम्। मैंने श्रीराम को पहचान नहीं सका और उनकी शरण में आने में देरी कर दी, इसी कारण मेरी यह हालत हुई।
2- दूसरी बात यह कि अपने प्रतिद्वंद्वी, अपने शत्रु को कभी अपने से छोटा नहीं समझना चाहिए, मैं यह भूल कर गया। मैंने जिन्हें साधारण वानर और भालू समझा उन्होंने मेरी पूरी सेना को नष्ट कर दिया। मैंने जब ब्रह्माजी से अमरता का वरदान मांगा था तब मनुष्य और वानर के अतिरिक्त कोई मेरा वध न कर सके ऐसा कहा था क्योंकि मैं मनुष्य और वानर को तुच्छ समझता था। मेरी मेरी गलती हुई।
3- रावण ने लक्ष्मण को तीसरी और अंतिम बात ये बताई कि अपने जीवन का कोई राज हो तो उसे किसी को भी नहीं बताना चाहिए। यहां भी मैं चूक गया क्योंकि विभीषण मेरी मृत्यु का राज जानता था। ये मेरे जीवन की सबसे बड़ी गलती थी।
आज के रावण के दस अवगुण:
1. काम
2. क्रोध
3. लोभ
4. मोह
5. मद
6. ईर्ष्या
7. स्वार्थ
8. अन्याय
9. अमानवीय व्यवहार
10. अहंकार

हम सबमें आज और तब भी राम और रावण के गुण होते हैं । यह तो लेखक की लेखनी का चमत्कार है कि कैसे रावण को राक्षस और राम को भगवान बना देता है । आवशयकता है अपने राम को पहचाने ।
रावण के दस गुण :
1. महान ज्ञानी : जब रावण को दशानन कहा जाता था उसका कारण था कि रावण के पास चारों वेदों और छ शास्त्रों का ज्ञान था । इसी लिए उसके 10 सर दिखाये गए हैं ।
2. शक्तिशाली : रावण उस समय में सबसे शक्तिशाली राजाओं में से एक था । राजा होने के साथ उसमे अपार सैन्य बल था जिसके कारण उसके राज्य पर आक्रमण करने की उस समय के राजाओं की क्षमता नहीं थी
3. राजनीतिज्ञ : रावण के राज्य का विस्तार आज के उत्तर प्रदेश के आसपास तक था। इसीलिए अयोध्या के पास जब तथाकथित सूर्पनखा ने राम और लक्षमण से प्रणय निवेदन अपने राज्य की सीमा में ही किया था । सूर्पनखा उस समय रावण की “जंगल राज्य मंत्री: थी और इसी के कारण उस इलाके में घूमती रहती थी
4. महान उपासक : ईश्वर के महान उपासक होने का प्रमाण उस के पास विभिन्न सिद्धियों से पता लगता हैं ।
5. यज्ञ का ज्ञाता : वह एक महान यज्ञ विज्ञान का ज्ञाता था । उस समय में उससे श्रेष्ठ यज्ञ का ब्रह्मा नहीं था इसीलिए जब रामसेतु निर्माण का कार्य करे की बारी आई तो लक्ष्मण ही रावण को उसकी पूजा विधि के लिए लाये थे ।
6. रसायन शास्त्र : रावण के आयुद्ध निर्माण में रसायन शास्त्र का अद्भुत प्रयोग होता था
7. पारिवारिक संबंध : एक भाई की तरह जब उसे यह ज्ञात हुआ सूर्पनखा से कि सूर्पनखा का अपमान हुआ था (नाक कट गयी) तो उसने यह प्राण लिया कि जिसने भी उसकी बहिन का अपमान किया है वह उससे अवश्य बदला लेगा
8. मर्यादित चरित्र : माता सीता से मिलने पुष्प वाटिका में रावण कभी भी बिना पत्नी के नहीं गया । यह उस बात का खंडन करता है कि रावण का चरित्र गिरा हुआ था ।
9. निष्पक्ष भाव : उसकी निष्पक्षिता का उदाहरण इसी बात से मिलता है कि जब लक्ष्मण के बिना बताए कि “विजय यज्ञ” किस युद्ध के लिए है, रावण को यज्ञ का ब्रह्मा बनने के लिए वचन लिया । उसके उपरांत जब रावण ने पूछा कि यज्ञ कहाँ होगा और तुम कहाँ रहते हो । फिर लक्षमण ने बताया कि यज्ञ राम ने करना है । यह जानते हुए कि राम के विजय यज्ञ से रावण की अपनी हार सुनिश्चित होती है । परंतु वचन की खातिर रावण ने यह भी अपनी उदारता और निष्पक्ष भावना का परिचय देता हुआ स्वीकार किया था
10. कर्तव्यपरायण और निर्भीक : रावण जब भी किसी कार्य को अपने हाथ मे लेता आता पूर्ण विश्वास से उस कर्म को करता था। अपने सामने युद्ध के समय यह जानते हुए भी शायद उसकी हार सुनिश्चित है फिर भी उसके निर्भीकता का परिचय देते हुए युद्ध करना स्वीकार किया