अग्निवीर नाम की जो योजना सरकार अब सैनिकों की भर्ती के लिए लेकर आई है, वह कितनी ठीक है, कितनी गलत है, इस पर आपको बहुत सी चर्चाएं सुनने को मिल गई होगी । इसका इस प्रकार से विरोध भी हो रहा है, और बहुत लोग इसका समर्थन भी कर रहे हैं । अब आप यहां पर एक बात समझ में, जो वाकई में सेना में जाने वाले व्यक्ति हैं, या वह नौजवान जो सैनिक बनने की चाह रखता है । उनकी संख्या 130 करोड़ के देश में, शायद लगभग दो लाख या तीन लाख हो सकती है । क्योंकि पिछले वर्षों में भी, जब सामान्य भर्ती होती थी 40 हजार या 50 हजार के आसपास सैनिकों को प्रतिवर्ष लिया जाता था । अब परीक्षा देने वालों की गिनती मत मानिए, परंतु जो वाकई यहां आने का इच्छुक होता था, वह लगभग 4 लाख से अधिक नहीं था । पर इसका विरोध करने वाले इस समय, या समर्थन करने वाले बहुत से ऐसे लोग हैं जिनके अपने स्वार्थ जुड़े हैं । कुछ लोग कोचिंग सेंटर के मालिक भी होंगे, कुछ राजनीतिक दलों का समर्थन करने वाले भी हैं, कुछ सरकार का विरोध करने वाले भी हैं ।
समर्थन वाले सरकार का समर्थन अपने लिए कर रहे हैं, विरोध वाले सरकार का विरोध अपने लिए कर रहे हैं । शिक्षण संस्थान चलाने वाले लोग अपने लिए कर रहे हैं । उनका तो कुछ समझ भी आता है, लेकिन बहुत से लोग ऐसे हैं, जिनको इस योजना से कोई लेना देना नहीं है, परंतु फिर भी समर्थन या विरोध प्रकट कर रहे हैं । परिवार का कोई सेना में नहीं गया, न आगे जाने की उम्मीद है, फिर भी कोई ना कोई इस पर अपनी राय अवश्य देनी है । उसके पीछे कई बार सरकार के प्रति अगाध विश्वास या अगाध अविश्वास भी हो सकता है ।
दुर्भाग्यपूर्ण बात यह है, कि लोग या तो कट्टर समर्तन में हैं या कट्टर विरोध में । आपको कहीं पर बुद्धिजीवी, अथवा जनता यह कहते नजर नहीं आती, की योजना अच्छी है पर कुछ कमियां है, अथवा योजना बहुत बुरी है परंतु इसमें कुछ अच्छा यह भी है । योजना की अच्छाई और बुराई पर चर्चा नहीं होती । जो इसे अच्छा कहते हैं वह अच्छे लिए के कसीदे पढ़ देता हैं । और जो बुरा कहते हैं व्याज पूरे लेख बुराई में लिख लिख देती है । बीच का रास्ता कहीं नजर नहीं आता । यह लोकतंत्र के लिए दुर्भाग्यपूर्ण है । आप समझें सरकार हमेशा पूर्णतया सही निर्णय या पूर्णतया गलत निर्णय नहीं ले सकती है नहीं तो सरकार भगवान न हो जाए । उसमें कुछ कमी और कुछ गलत भी हो सकता है । पर हमने अपने राजनैतिक दलों को या तो भगवान का दर्ज दे दिया है या शैतान का ।
अब आप यह समझिए, यह योजना कितनी ठीक है इसकी जानकारी आपको कौन देता है, या गलत है तो भी इसकी जानकारी कौन देता है ? इसकी जानकारी देने में, या तो समाचार चैनल आ गए हैं, यह समाचार पत्र आपको बताते हैं, अथवा भारत सरकार की कोई प्रेस कॉन्फ्रेंस । जिस देश में 25 से अधिक चैनल अंबानी समूह के हैं, 12 से अधिक से अधिक अदानी समूह के हैं, और 15 से अधिक चैनल सुभाष चंद्र जी के समूह से हैं । ऐसे में इन चैनलों से, सही सत्य की उम्मीद करना मेरे विचार से नादानी है । अब रही सरकार की प्रेस कॉन्फ्रेंस की, तो सरकार क्योंकि स्वयं इस योजना को ला रही है, इसका एक पहलू ही बताएगी । पिछले कुछ वर्षों से प्रेस कॉन्फ्रेंस का तरीका बदल गया है, क्योंकि इसमें व्यवसायीकरण और बाजारीकरण आ चुका है, विरोधियों को भी पूछने के निश्चित प्रश्न दिए जाते हैं जिनकी उत्तर प्रेस कॉन्फ्रेंस करने वाले को पहले से मालूम होते हैं । तो न तो अनायास प्रश्न होते हैं तो न अनायास उत्तर होते हैं । तो इस प्रेस कॉन्फ्रेंस में भी आपको सही समाचार नहीं मिलने वाला ।
अब आप एक समाचार और देखिए, अभी पिछले कुछ दिनों पहले एक राजनीतिक दल के कुछ सांसदों ने किसी धर्म विशेष पर कुछ टिप्पणी कर दी, और उसके समर्थन और विरोध में देश में बवाल हो गया । अभी आप देखिए महाराष्ट्र की राजनीतिक गलियारे में हलचल हो रही है । हर कुछ दिनों बाद आप देखेंगे, कि देश में कोई नया समाचार, बवाल उत्तल पुथल होती रहती है और समाचार पत्र और चैनल उसी में कुछ गुटों को लड़ा कर अपने आपको अपने पाक साफ होने का परिचय देते रहते हैं । अब यह बवाल कुछ तो अनायास हो जाते हैं, और कुछ बवालों को विशेष तैयारी करके करवाया जाता है । और इस तैयारी को करवाने के लिए कुछ षड्यंत्रकारी वैश्विक शक्तियां है । और विरोध करने के लिए आम जनता खड़ी हो जाती है, यह सोच कर कि शायद वह देश का बड़ा भला करने वाले हैं ।
आपको एक उदाहरण याद कराना चाहता हूं, सन 2010 के आसपास, सरकार का एक निर्णय आता है, कि भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान यानी कि आईआईटी के लिए विद्यार्थियों को केवल 3 बार प्रवेश परीक्षा देने का अधिकार है । इस पूरे बवाल के बाद बहुत बसों में भर हर कर लोग, मानव संसाधन मंत्रालय का दिल्ली में घेराव करते हैं, जब आप उन बसों को देखोगे, वह सभी बसें विभिन्न कोचिंग संस्थान की थी । अब क्योंकि कोचिंग संस्थान को ही सबसे बड़ा दुष्प्रभाव होगा, अगर बच्चा बार-बार यह परीक्षा नहीं दे पाएगा, तो उनके धंधे पर असर पड़ेगा, इसके लिए उन्होंने अपनी बसों का वहां प्रयोग किया । कोई देश से मतलब नहीं, कोई युवा से मतलब नहीं प्रश्न केवल अपने पैसे कमाने का था ।
परंतु सबसे बड़ा दुर्भाग्य इन सभी स्थितियों में एक ही है । कि समाज टुकड़ों में टूटता जा रहा है । हमने कहीं पढ़ा था अंग्रेजों की यह नीति थी, Divide and Rule आज इस योजना का उपयोग हर स्तर पर धड़ल्ले से किया जाता है । अब अगर लोकतांत्रिक व्यवस्था की भी बात कर ले, लोकतांत्रिक तरीका तो यह था, कि भारत सरकार पहले इस योजना को एक वर्ष से इस योजना पर चर्चा करने के लिए ले आती, लोगों के बीच में ले आती, जिस समय चुनावी भाषण किए जाते हैं उस समय उस योजना की रूपरेखा दिखा दी जाती लोगों को चर्चा के लिए छोड़ दिया जाता। जो सुझाव आते हैं उनको मिल कर लिया जाता, और उसके बाद यह योजना दी जाती, जिसमें भारत का अधिकांश तबका संतुष्ट रहता । कुछ तो हमेशा ही असंतुष्ट रहेंगे । परंतु फिर भी लोकतंत्र के अनुसार अधिकांश लोगों की यह सोच होती ।
परंतु अगर आप देखे अब ऐसे काम नहीं होते, जब किसान कानून का विरोध हुआ, तभी सरकारों का एक ही कहना था हम पूर्ण रूप से कानून लगाएंगे । फिर बहुत कुछ कहा गया संशोधनों के साथ भी प्रस्तावित किया गया । इस योजना में भी, जिसे आप अग्निवीर योजना कह सकते हैं, तीन संशोधन तो भारत सरकार ने अभी तीन दिन में ही कर लिए । आगे भी बहुत कुछ बदलने की उम्मीद है । इस प्रकार की बातें हो क्यों रही है? इसके पीछे एक बड़ी कार्यावली , या एजेंडा चलता है। और मैं अब उस के विषय में आपसे बात करने वाला हूं । यह जो एजेंडा है इसका नाम ग्रेट रीसेट कह दीजिए, न्यू वर्ल्ड ऑर्डर कह दीजिए । उसी के अनुसार सारे काम हो रहे हैं । इसके अनुसार अधिकांश काम मशीनों से किए जाएंगे । आप देखिए पिछले दिनों में, झारखंड सरकार ने अपने 50 से अधिक काम जो पुलिस करती थी उसे निजी हाथों में सौंपने का कार्यक्रम सुना दिया है । इसी प्रकार मध्यप्रदेश सरकार ने भी बहुत ही सेवाओं को निजी हाथों में देने का निर्णय लिया है । अब वह भी समय है कि आप देखिए सरकारी अध्यापक को हमेशा अस्थायी ही रखा जा रहा है । आप अपने सामने देख सकते हैं, सड़कों पर कैमरे लग गए हैं जिससे आपके चालान कर सकें, आपके पास एक पोर्टल दे दिया है जिसमें आप अपने चालान की रकम अदा कीजिए । अब सरकार को न तो चालान काटने वाला चाहिए, नहीं चालान को वसूलने वाला चाहिए । अब सरकार चाहे तो, पुलिस की संख्या में कमी ले आएगी । सरकार का खर्चा बचा, पर लोगों की नौकरी दी गई । इसी के साथ यही काम सेना में भी होने वाला है । क्योंकि भविष्य में सेनाएं दूसरे देश के प्रति लड़ने के लिए प्रयोग नहीं होगी । क्योंकि जिस दिशा में हम भाग रहे हैं, उसके बाद एक ही सत्ता पूरे विश्व में विद्यमान रहेगी, एक ही मुद्रा पूरे विश्व में रहेगी, और एक ही धर्म पूरे विश्व में रखा जाएगा । एक ही कानून पूरे विश्व का होगा, जिसको चलाने वाले चंद लोग होंगे । और जब आपको लोगों की आवश्यकता नहीं होगी, आप लोगों को अपने साथ क्यों रखोगे ? आपको समय मिले तो गूगल पर जॉर्जिया स्टोन टाइप कीजिए, आपको पता लगेगा, जॉर्जिया में 80 के दशक में कुछ पत्थर दिखे गए, जो पत्थर कब आया, किसने लिखा यह बिल्कुल नहीं पता । अलबत्ता यह जरूर लिखा हुआ है के पूरे विश्व की जनसंख्या को 50 करोड से कम करना है ।
आने वाला समय हमारी पीढ़ियों के लिए, बहुत आजाद नहीं रहने वाला, समझने की आवश्यकता है । अन्यथा बहुत देर हो जाएगी । धन्यवाद